देखकर सडकों पर दौडती हुयी
नयी-नयी कारों को,
आँखों को नई चमक देते हुए
पीठ पर मैली-कुचैली प्लास्टिक की बोरियों में
अपने भविष्य को उठाए हुए,
ठंढक के दिनो में फटे हुए
नयी-नयी कारों को,
आँखों को नई चमक देते हुए
पीठ पर मैली-कुचैली प्लास्टिक की बोरियों में
अपने भविष्य को उठाए हुए,
ठंढक के दिनो में फटे हुए
बाबु साहब द्वारा परित्यक्त निकर को
सभालते हुए,
ठंढक को मानो चुनौती देते हुए
‘’चाहे जितना भी करलो सितम,
हँस-हँस के सहेंगे हम’’
को चरितार्थ करते हुए
बे-सहारे बच्चे,
जिनको देखकर गली के डाक्टर साहब का जोली(कुत्ता)
भी उन्हें अपने मुहल्ले से
अपना प्रतिद्वन्दी मानते हुए भौकता है,
गली के आवारा कुत्ते भी
झुन्ड बनाकर,
उन्हे
अपने इलाके से भगाने की कोशिश करते हैं,
“ कुत्ता भौकता रहे,हाथी मस्त हो चला जाता है’’
की लोकोक्ति को सिद्ध करते हुए,
उन कूडे की ढेर में,
जिसमें मक्खियां अपना घर बना चुकी है
सदा न उडने के लिए,
उनमें
अपने भविष्य को तलासने में तल्लीन,
भौकने की परवाह ना करके
आगे निकल जाते हैं,
अपनी भविष्य को पीठपर लादे हुए।
काश बडे बाबू अपने टामी की
सुखे मेवे का उच्छीष्ठ भाग का
कुछ अंश
इन यतीम बच्चों में बाट देते
तो
क्षुधा थोडी शान्त हो जाती,
कुछ बात बन जाती,
इन चमकती आँखों वाले दिशा विहीन
लेकिन,
शाम की रोटी को उद्देश्य मानने
वाले इन यतीमों की
शायद किस्मत चमक जाती।।
मेम साहब अपनी महीने की
सौन्दर्यके खर्च का कुछ अंश
इन बे-सहारा बच्चो मे बाँट देती
तो शायद,
किसी की किस्मत चमक जाती,
इनमें से कोई राकेश शर्मा तो कोई
कल्पना चावला बन जाती।
काश।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
लाल साहब यदुवंशी
सभालते हुए,
ठंढक को मानो चुनौती देते हुए
‘’चाहे जितना भी करलो सितम,
हँस-हँस के सहेंगे हम’’
को चरितार्थ करते हुए
बे-सहारे बच्चे,
जिनको देखकर गली के डाक्टर साहब का जोली(कुत्ता)
भी उन्हें अपने मुहल्ले से
अपना प्रतिद्वन्दी मानते हुए भौकता है,
गली के आवारा कुत्ते भी
झुन्ड बनाकर,
उन्हे
अपने इलाके से भगाने की कोशिश करते हैं,
“ कुत्ता भौकता रहे,हाथी मस्त हो चला जाता है’’
की लोकोक्ति को सिद्ध करते हुए,
उन कूडे की ढेर में,
जिसमें मक्खियां अपना घर बना चुकी है
सदा न उडने के लिए,
उनमें
अपने भविष्य को तलासने में तल्लीन,
भौकने की परवाह ना करके
आगे निकल जाते हैं,
अपनी भविष्य को पीठपर लादे हुए।
काश बडे बाबू अपने टामी की
सुखे मेवे का उच्छीष्ठ भाग का
कुछ अंश
इन यतीम बच्चों में बाट देते
तो
क्षुधा थोडी शान्त हो जाती,
कुछ बात बन जाती,
इन चमकती आँखों वाले दिशा विहीन
लेकिन,
शाम की रोटी को उद्देश्य मानने
वाले इन यतीमों की
शायद किस्मत चमक जाती।।
मेम साहब अपनी महीने की
सौन्दर्यके खर्च का कुछ अंश
इन बे-सहारा बच्चो मे बाँट देती
तो शायद,
किसी की किस्मत चमक जाती,
इनमें से कोई राकेश शर्मा तो कोई
कल्पना चावला बन जाती।
काश।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
लाल साहब यदुवंशी